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________________ 150. अंतरबाहिरजप्पे जो वइ सो हवेइ बहिरप्पा। जप्पेसु जो ण वइ सो उच्चइ अंतरंगप्पा॥ अंतरबाहिरजप्पे अंतरंग और बाह्य जल्प में क्रियाशील होता है वह बहिरप्पा जप्पेसु [(अंतर) वि-(बाहिर) वि- (जप्प) 7/1] (ज) 1/1 वि (वट्ट) व 3/1 अक (त) 1/1 सवि (हव) व 3/1 अक (बहिरप्प) 1/1 (जप्प) 7/2 (ज) 1/1 वि अव्यय (वट्ट) व 3/1 अक (त) 1/1 सवि (उच्चइ) व कर्म 3/1 अनि (अंतरंगप्प) 1/1 होता है बहिरात्मा जल्पों में जो नहीं क्रियाशील होता है वह कहा जाता है उच्चइ अंतरंगप्पा अन्तरात्मा अन्वय- जो अंतरबाहिरजप्पे वट्टइ सो बहिरप्पा हवेइ जो जप्पेसु ण वइ सो अंतरंगप्पा उच्चड़। ___ अर्थ- जो (साधु) अंतरंग और बाह्य जल्प (कथन/उक्ति) में क्रियाशील होता है वह बहिरात्मा होता है (और) जो (साधु) (अंतरंग और बाह्य) जल्पों में क्रियाशील नहीं होता है वह अन्तरात्मा कहा जाता है। (92) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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