________________
149. आवासएण जुत्तो समणो सो होदि अंतरंगप्पा । आवासयपरिहीणो समणो सो होदि बहिरप्पा ॥
आवासएण
जुत्तो
समणो
सो
होदि
अंतरंगप्पा
आवासयपरिहीणो
समणो
सो
होदि
बहिरप्पा
(आवासअ) 3/1 वि
(जुत्त) भूक 1 / 1 अनि
( समण) 1 / 1
(त) 1 / 1 सवि
(हो) व 3/1 अक
(अंतरंगप्प) 1 / 1
[(आवासय) वि- (परिहीण)
भूकृ 1/1 अनि]
( समण) 1 / 1
(त) 1/1 सवि
(हो) व 3/1 अक
(बहिरप्प) 1/1
आवश्यक से
युक्त
श्रमण
वह
होता है
अन्तरात्मा
आवश्यक से ही
श्रमण
वह
होता है
बहिरात्मा
अन्वय- आवासएण जुत्तो समणो सो अंतरंगप्पा होदि आवासय
परिहीणो समणो सो बहिरप्पा होदि ।
अर्थ- आवश्यक से युक्त (जो ) श्रमण ( है ) वह अन्तरात्मा होता है (और) आवश्यक से हीन (जो ) श्रमण ( है ) वह बहिरात्मा होता है ।
नियमसार (खण्ड-2)
(91)