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148. आवासएण हीणो पन्भट्टो होदि चरणदो समणो।
पुव्वुत्तकमेण पुणो तम्हा आवासयं कुज्जा॥
आवासएण हीणो पब्भट्टो होदि
चरणदो समणो
(आवासअ) 3/1 वि
आवश्यक से (हीण) 1/1 वि रहित (पब्भट्ट) भूकृ 1/1 अनि दूषित . (हो) व 3/1 अक होता है (चरण) 5/1
चारित्र से (समण) 1/1 [(पुव्व) वि-(उत्तकमेण)] [(पुव्व) वि (उत्त) भूकृ अनि- पूर्व में कही गई (कम) 3/1]
रीति से
श्रमण
पुव्वुत्तकमेण
अव्यय
चूँकि
पुणो तम्हा आवासयं
अव्यय (आवासय) 2/1 वि (कु) विधि 3/1 सक
इसलिए आवश्यक करे
कुज्जा
अन्वय- पुणो आवासएण हीणो समणो चरणदो पन्भट्टो होदि तम्हा पुव्वुत्तकमेण आवासयं कुज्जा।
अर्थ- चूँकि (ध्यान स्वरूप) आवश्यक से रहित श्रमण चारित्र से दूषित होता है, इसलिए (वह) पूर्व में कही गई रीति से आवश्यक (आत्म-स्वभाव में स्थिरभाव) करे।
1.
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'चरणादो' का 'चरणदो' किया गया है।
(90)
नियमसार (खण्ड-2)