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138. सव्ववियप्पाभावे अप्पाणं जो दु जुंजदे साहू।
सो जोगभत्तिजुत्तो इदरस्स य किह हवे जोगो॥
सर्वविकल्पों के अभाव में निज को
पादपूरक लगाता है
.
सव्ववियप्पाभावे [(सव्ववियप्प)+(अभावे)]
[(सव्व) सवि-(वियप्प)-
(अभाव) 7/1] अप्पाणं
(अप्पाण) 2/1 (ज) 1/1 सवि अव्यय (झुंज) व 3/1 सक (साहु) 1/1
(त) 1/1 सवि जोगभत्तिजुत्तो [(जोग)-(भत्ति)
(जुत्त) भूकृ 1/1 अनि] इदरस्स
(इदर) 6/1 अव्यय अव्यय (हव) व 3/1 अक (जोग) 1/1.
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साधु
वह योगभक्ति से युक्त
अन्य के पादपूरक
होगी
अन्वय-जो साहू दुसव्ववियप्पाभावे अप्पाणं जुंजदे सो जोगभत्तिजुत्तो इदरस्स य जोगो किह हवे।
. अर्थ- जो साधु सर्वविकल्पों के अभाव में निज को लगाता है वह योगभक्ति से युक्त (है)। अन्य के अर्थात् जो निज को नहीं लगाता है उसके योग (भक्ति) कैसे होगी?
1.
प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता
नियमसार (खण्ड-2)
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