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________________ 135. मोक्खंगयपुरिसाणं गुणभेदं जाणिऊण तेसिं पि जो कुणदि परमभत्तिं ववहारणयेण परिकहियं । । मोक्खंगयपुरिसाणं [ ( मोक्खं ) ' - ( गय) भूकृ अनि मोक्ष को प्राप्त हुए पुरुषों के गुण- विशेष को गुणभेदं जाणिऊण सिं पि जो कुणदि परमभत्तिं ववहारणयेण परिकहियं 1. ( पुरिस ) 6 / 2] [(गुण) - (भेद ) 2 / 1] (जाण) संकृ (त) 6/2 सवि अव्यय (76) (ज) 1 / 1 सवि (कुण) व 3/1 सक [ ( परम ) वि - (भत्ति) 2 / 1] (ववहारणय) 3/1 (परिकह) भूक 1/1 जानकर उनकी भी जो करता है परमभक्ति व्यवहारनय से कहा गया कुदि ववहारणयेण परिकहियं । अर्थ- जो (श्रावक अथवा श्रमण ) मोक्ष को प्राप्त हुए पुरुषों के गुणविशेष को जानकर उनकी भी परमभक्ति करता है (उसके) व्यवहारनय से (यह) कहा गया (है) (कि) (वह निर्वाणभक्ति है ) । अनुस्वार का आगम हुआ है। (हेम-प्राकृत - व्याकरणः 1-26) अन्वय- जो मोक्खंगयपुरिसाणं गुणभेदं जाणिऊण तेसिं पि परमभत्तिं नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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