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131. जो दु हस्सं रई सोगं अरतिं वज्जेदि णिच्चसो ।
तस्स सामाइगं ठाइ
इदि केवलिसासणे ॥
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दु
हस्सं
रई
सोगं
अरतिं
वज्जेदि
णिच्चसो
तस्स
सामाइगं
ठाइ
इदि
केवलिसासणे
(ज) 1/1 सवि
अव्यय
नियमसार (खण्ड-2
(हस्स) 2 / 1
( रइ) 2 / 1
(सोग) 2/1
( अरति) 2 / 1
( वज्ज) व 3/1 सक
अव्यय
(त) 6/1 सवि
( सामाइग) 1 / 1
(ठा) व 3 / 1 अक
अव्यय
-2)
(केवलिसासण) 7/1
जो
और
हास्य
रति
शोक
अर
छोड़ता है
सदैव
उसके
सामायिक
स्थिर होती है
अन्वय- जो दुहस्सं रई सोगं अरतिं णिच्चसो वज्जेदि तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे ।
इस प्रकार
केवली के शासन में
अर्थ- जो (साधु) हास्य, रति, शोक और अरति को सदैव छोड़ता है, उसके (समभावरूप) सामायिक स्थिर होती है। इस प्रकार केवली के शासन में
( कहा गया है ) ।
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