________________
130. जो दु पुण्णं च पावं च भावं वज्जेदि णिच्चसो।
तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे॥
5
पादपूरक
(ज) 1/1 सवि अव्यय (पुण्ण) 2/1 अव्यय (पाव) 2/1 अव्यय
पुण्य
By PF
और
भावं वज्जेदि णिच्चसो तस्स सामाइगं ठाइ
(भाव) 2/1 (वज्ज) व 3/1 सक अव्यय (त) 6/1 सवि (सामाइग) 1/1 (ठा) व 3/1 अक अव्यय (केवलिसासण) 7/1
पाप पुनरावृत्ति भाषा की पद्धति कर्म (क्रिया) छोड़ता है सदैव उसके सामायिक स्थिर होती है इस प्रकार केवली के शासन में
केवलिसासणे
अन्वय- जो द पुण्णं च पावं च भावं णिच्चसो वज्जेदि तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे।
. अर्थ- जो (साधु) (शुभ परिणति से उपार्जित) पुण्य कर्म को और पाप (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्म और परिग्रह के परिणाम से उत्पन्न होनेवाले) (कर्म) को सदैव छोड़ता है उसके (समभावरूप) सामायिक स्थिर होती है। इस प्रकार केवली के शासन में (कहा गया है)।
(70)
नियमसार (खण्ड-2)