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129. जो दु अटुं च रुदं च झाणं वज्जेदि णिच्चसो।
तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे॥
जो
(ज) 1/1 सवि अव्यय (अट्ट) 1/1 वि .
पादपूरक
आर्त
अव्यय
और
(रुद्द) 1/1
औद्र
अव्यय
आण
वज्जेदि णिच्चसो तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे
(झाण) 2/1 (वज्ज) व 3/1 सक अव्यय (त) 6/1 सवि (सामाइग) 1/1 (ठा) व 3/1 अक अव्यय (केवलिसासण) 7/1
पुनरावृत्ति भाषा की पद्धति ध्यान को छोड़ता है सदैव उसके सामायिक स्थिर होती है इस प्रकार केवली के शासन में
अन्वय-जो दु अझं च रुदं च झाणं णिच्चसो वज्जेदि तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे। ____ अर्थ- जो (साधु) आर्त और रौद्र ध्यान को सदैव छोड़ता है उसके (समभावरूप) सामायिक स्थिर होती है। इस प्रकार केवली के शासन में (कहा गया है)।
नियमसार (खण्ड-2)
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