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128. जस्स रागो दु दोसो दु विगडिं ण जणेइ दु।
तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे।।
जिसके
जस्स रागो
दोसो
विगडिं
विकार
ण
(ज) 6/1 सवि (राग) 1/1 अव्यय (दोस) 1/1 अव्यय (विगडि) 2/1 अव्यय (जण) व 3/1 सक
अव्यय (त) 6/1 सवि (सामाइग) 1/1 (ठा) व 3/1 अक
नहीं
जणेइ
उत्पन्न करता है
तो
तस्स सामाइगं
ठाइ
उसके सामायिक स्थिर होती है इस प्रकार केवली के शासन में
इदि
अव्यय
केवलिसासणे
(केवलिसासण) 7/1
अन्वय-जस्स रागो दु दोसो दु विगडिं ण जणेइ दु तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे।
. अर्थ- जिस (साधु) के (बाह्य वस्तुओं के प्रति) राग (आकर्षण) या द्वेष (विकर्षण) (है) किन्तु (वह उसमें) विकार उत्पन्न नहीं करता है तो उसके (समभावरूप) सामायिक स्थिर होती है। इस प्रकार केवली के शासन में (कहा गया है)।
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नियमसार (खण्ड-2)