________________
127. जस्स सण्णिहिदो अप्पा संजमे णियमे तवे । तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे ||
जस्स
सणिहिदो
अप्पा
संज
णिय
तवे
तस्स
सामाइगं
ठाइ
इदि
केवलिसासणे
(ज) 6/1 सवि
जिसके
(सणिहिद) भूक 1 / 1 अनि अन्तर्वर्ती
( अप्प ) 1 / 1
( संजम ) 7/1
(नियम) 7/1
(तव) 7/1
(त) 6 / 1 सवि
(सामाइग) 1/1
(ठा) व 3 / 1 अक
अव्यय
(केवलिसासण) 7/1
शुद्ध आत्म द्रव्य
संयम में
नियम में
तप में
उसके
सामायिक
स्थिर होती है
इस प्रकार
केवली के शासन में
अन्वय- जस्स संजमे णियमे तवे अप्पा सण्णिहिदो तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे ।
अर्थ- (बाह्य प्रपंच से पराङ्मुख) जिस (साधु) के (बाह्य व अभ्यंतर) संयम में, (मर्यादित काल के आचरण स्वरूप) नियम में (तथा) (बाह्य और अभ्यंतर) तप में शुद्ध आत्म द्रव्य अन्तर्वर्ती ( है ) उसके (समभावरूप) सामायिक स्थिर होती है। इस प्रकार केवली के शासन में (कहा गया है)।
नियमसार (खण्ड-2)
(67)