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125. विरदो सव्वसावज्जे तिगुत्तो पिहिदिदिओ।
तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे॥
निवृत्त
विरदो . सव्वसावज्जे
तिगुत्तो पिहिदिदिओ
(विरद) 1/1 वि [(सव्व) सवि-(सावज्ज) समस्त पापों से 7/1-5/1] (तिगुत्त) 1/1 वि तीन गुप्तिवाला [(पिहिद)+ (इंदिओ)] [(पिहिद) भूकृ-(इंदिअ)1/1] नियन्त्रित की गई
इन्द्रियवाला अथवा इन्द्रिय नियन्त्रित की
तस्स सामाइग ठाइ
(त) 6/1 सवि (सामाइग) 1/1 (ठा) व 3/1 अक
उसके सामायिक स्थिर होती है इस प्रकार केवली के शासन में
अव्यय
केवलिसासणे
(केवलिसासण) 7/1
अन्वय- सव्वसावज्जे विरदो तिगुत्तो पिहिदिदिओ तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे।
अर्थ- (जो) समस्त पापों से निवृत्त (है), (जो) (मन-वचन-कायरूप) तीन गुप्तिवाला (है), (जो) नियन्त्रित की गई इन्द्रियवाला (है) अथवा (जिसके द्वारा) (प्रत्येक) इन्द्रिय नियन्त्रित की गई (है) उसके सामायिक (समभाव) स्थिर होती है। इस प्रकार केवली के शासन में (कहा गया है)। 1. कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-136) नियमसार (खण्ड-2)
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