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118. णंताणंतभवेण समज्जियसुहअसुहकम्मसंदोहो।
तवचरणेण विणस्सदि पायच्छित्तं तवं तम्हा॥
णंताणंतभवेण [(णंताणंत)-(भव) 3/1] अनंतानंत भवों द्वारा समज्जियसुहअसुह- [(समज्जिय) वि-(सुह) वि- उपार्जित शुभ-अशुभ कम्मसंदोहो (असुह) वि-(कम्म)-(संदोह) कर्मसमूह
1/1] तवचरणेण [(तव)-(चरण) 3/1] तपरूपी चारित्र से विणस्सदि (विणस्स) व 3/1 अक नष्ट होता है
पायच्छित्तं
(पायच्छित्त) 1/1
प्रायश्चित्त
(तव) 1/1
तप
तम्हा
अव्यय
इसलिए
अन्वय- णंताणंतभवेण समज्जियसुहअसुहकम्मसंदोहो तव चरणेण विणस्सदि तम्हा तवं पायच्छित्त
अर्थ- अनंतानंत भवों द्वारा उपार्जित शुभ-अशुभ कर्मसमूह (बाह्यअंतरंग) तपरूपी चारित्र से नष्ट होता है, इसलिए तप प्रायश्चित्त (निर्विकार चित्त
की प्राप्ति) (है)।
नियमसार (खण्ड-2)
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