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________________ 108. आलोयणमालुंछण वियडीकरणं च भावसुद्धी य चउविहमिह परिकहियं आलोयणलक्खणं समए । आलोयणमालुंछण [(आलोयणं) + (आलुंछण)] आलोयणं (आलोयण) 1 / 1 * आलुंछण (आलुंछण) 1 / 1 (वियडीकरण) 1/1 वियडीकरणं च भावसुद्धी चउविहमिह परिकहियं आलोयणलक्खणं समए आलोचन आलुंछन वियडीकरण और भावशुद्धि पादपूरक अव्यय (भावसुद्धि) 1 / 1 अव्यय [ ( चउविहं) + (इह )] चउविहं (चउविह) 1 / 1 वि इह (अ) = यहाँ (परिकह) भूक 1/1 कहा गया [(आलोयण) - (लक्खण) 1 / 1] आलोचना का लक्षण (समअ) 7/1 सिद्धान्त में चार प्रकार का यहाँ अन्वय- समए आलोयणलक्खणं चउविहमिह परिकहियं आलोयण मालुंछण वियडीकरणं च भावसुद्धी य। अर्थ - यहाँ सिद्धान्त में आलोचना का लक्षण चार प्रकार का कहा गया (है)। आलोचन (देखना), आलुंछन (उच्छेदन), वियडीकरण (प्रकटीकरण) और भावशुद्धि। * प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 ) (46) नियमसार (खण्ड
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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