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109. जो पस्सदि अप्पाणं समभावे संठवित्तु परिणाम।
आलोयणमिदि जाणह परमजिणंदस्स उवएसं।
जो
पस्सदि अप्पाणं समभावे संठवित्तु परिणाम आलोयणमिदि
(ज) 1/1 सवि (पस्स) व 3/1 सक देखता है (अप्पाण) 2/1
आत्मा को (समभाव) 7/1
समभाव में (संठव) संकृ
संस्थापित करके (परिणाम) 2/1
भावदशा को [(आलोयणं)+ (इदि)] आलोयणं (आलोयण) 1/1 आलोचन इदि (अ) =
शब्दस्वरूपद्योतक (जाण) विधि 2/2 सक जानो [(परम) वि-(जिणंद)' 6/1] परम जिनदेव के (उवएस) 2/1
उपदेश को
जाणह परमजिणंदस्स उवएसं
अन्वय- जो परिणाम समभावे संठवित्तु अप्पाणं पस्सदि आलोयणमिदि परमजिणंदस्स उवएसं जाणह।
___ अर्थ- जो (साधु ) (अंतरंग में स्थित होकर) भावदशा को समभाव में संस्थापित करके (निज) आत्मा को देखता है (वह) आलोचन (है)। परम जिनदेव के उपदेश को (तुम सब) जानो।
1.
यहाँ जिणंद के स्थान पर जिणिंद (जिण+इंद = जिणिंद) होना चाहिये।
नियमसार (खण्ड-2)
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