SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 107. णोकम्मकम्मरहियं विहावगुणपज्जएहिं वदिरित्तं । अप्पाणं जो झायदि समणस्सालोयणं होदि ।। णोकम्मकम्मरहियं' [(णोकम्म) - (कम्म) - ( रहिय) 1 / 1 वि] विहावगुणपज्जएहिं [(विहाव ) - (गुण) - वदिरित्तं अप्पाणं जो झायदि समणस्सालोयणं होदि 1. 2. (पज्जअ ) 3/2] (वदिरित्त) भूक 2 / 1 अनि (अप्पाण) 2/1 (ज) 1 / 1 सवि (झा झाय) व 3 / 1 सक 'य' विकरण [(समणस्स) + (आलोयणं ) ] समणस्स (समण) 6/1 आलोयणं (आलोयण) 1/1 (हो) व 3 / 1 अक नियमसार (खण्ड-2) शरीर और कर्म से रहित विभाव गुण- पर्यायों से भिन्न आत्मा जो ध्यान करता है अन्वय- जो णोकम्मकम्मरहियं विहावगुणपज्जएहिं वदिरित्तं अप्पाणं झायदि समणस्सालोयणं होदि । अर्थ- जो (पंच प्रकार के) शरीर' और (आठ प्रकार के) कर्म' से रहित (तथा) विभाव गुण - पर्यायों से भिन्न आत्मा का ( बाह्य प्रपंचों को छोड़कर) ध्यान करता है (उस) श्रमण के ( निश्चय) आलोचना घटित होती है। श्रमण के आलोचना घटित होती है शरीरः - औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्माण । कर्मः - ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय । (45)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy