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104. सम्मं मे सव्वभूदेसु वेर मज्झंण केणवि।
आसाए वोसरित्ता णं समाहि पडिवज्जए।
सम्म
समभाव मेरा सब प्राणियों पर
सव्वभूदेसु वेरं मज्झं
मेरा
नहीं
केणवि आसाए वोसरित्ता
(सम्म) 1/1 (अम्ह) 6/1 स [(सव्व) सवि-(भूद) 7/2] (वेर) 1/1 (अम्ह) 6/1 स अव्यय अव्यय (आसा) 7/1+2/1 (वोसर) संकृ अव्यय (समाहि) 2/1 (पडिवज्ज) व 1/1 सक
किसी के भी साथ आशा को छोड़कर निश्चय ही समाधि को प्राप्त करता हूँ
*समाहि पडिवज्जए
अन्वय- सव्वभूदेसु मे सम्मं मज्झं केणवि वेरं ण आसाए वोसरित्ता समाहि णं पडिवज्जए।
अर्थ- सब प्राणियों पर मेरा समभाव (है)। मेरा किसी के भी साथ वैर (भाव) नहीं है। (बाह्य) आशा को छोड़कर (अंतरगं में स्थित होता हुआ) (मैं) समाधि को निश्चय ही प्राप्त करता हूँ।
1.
2.
कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-135) पडिवज्जए (पडिवज्ज+ए) = पडिवज्जे (यह असामान्य प्रयोग है)। प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पिशल, पृ.सं. 676, 679। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) इसका दूसरा अर्थ इस प्रकार हो सकता हैः (जो) (बाह्य) आशा को छोड़कर (अंतरगं में स्थित होता है) (वह) समाधि को निश्चय ही प्राप्त करता है। संपादक द्वारा अनूदित
नियमसार (खण्ड-2)
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