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शाश्वत
आत्मा
ज्ञान-दर्शन लक्षणवाला शेष
सासदो (सासद) 1/1 वि अप्पा (अप्प) 1/1 णाणदसणलक्खणो [(णाण)-(दसण)
(लक्खण) 1/1 वि] (सेस) 1/2 वि (अम्ह) 4/1 स
(बाहिर) 1/2 वि भावा (भाव) 1/2
(सव्व) 1/2 सवि संजोगलक्खणा [(संजोग)
(लक्खण) 1/2 वि]
मेरे लिए
बाह्य
सब्वे
पदार्थ सभी संयोग लक्षणवाले
अन्वय- एगो जीवो मरदि य एगो सयं जीवदि एगस्स मरणं जादि य एगो णीरओ सिज्झदिणाणदंसणलक्खणो एगो मे अप्पा सासदो सेसा भावा मे बाहिरा सव्वे संजोगलक्खणा। .
अर्थ- एक (संसारी) जीव मरता है और वही (जीव) (कर्मों के कारण) स्वयं (ही) प्राण धारण करता है। (संसार में) एक जीव का मरण होता है और वही कर्मरहित हुआ सिद्ध हो जाता है। (किन्तु ज्ञानी विचारता है कि) ज्ञान-दर्शन लक्षणवाला अकेला मेरा आत्मा शाश्वत (है)। (इसके अतिरिक्त) शेष पदार्थ मेरे लिए बाह्य (है) (क्योंकि) (वे) सभी संयोग लक्षणवाले (हैं)।
नोटः
संपादक द्वारा अनूदित
नियमसार (खण्ड-2)
(39)