SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 93. झाणणिलीणो साहू परिचागं कुणइ सव्वदोसाणं। तम्हा दु झाणमेव हि सव्वदिचारस्स पडिकमणं॥ झाणणिलीणो साहू परिचागं कुणइ सव्वदोसाणं तम्हा [(झाण)-(णि) अ- ध्यान में लीन (लीण) भूकृ 1/1 अनि] (साहु) 1/1 साधु (परिचाग) 2/1 परित्याग (कुण) व 3/1 सक करता है [(सव्व) सवि-(दोस) 6/2] सब दोषों का अव्यय इसलिए अव्यय पादपूरक [(झाणं) + (एव)] झाणं (झाण) 1/1 ध्यान एव (अ) = ही पादपूरक [(सव्व) सवि सब दोषों का (अदिचार) 6/1] (पडिकमण) 1/1 प्रतिक्रमण झाणमेव अव्यय सव्वदिचारस्स पडिकमणं . अन्वय- साहू झाणणिलीणो सव्वदोसाणं परिचागं कुणइ तम्हा दु झाणमेव हि सव्वदिचारस्स पडिकमणं। ___ अर्थ- (जो) (अन्तर्मुखी) साधु (आत्म) ध्यान में लीन है (वह) सब दोषों का परित्याग करता है इसलिए ध्यान ही सब (अतीत के) दोषों का प्रतिक्रमण (त्याग) ( है)। नियमसार (खण्ड-2) (29)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy