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________________ 92. उत्तमअटुं आदा तम्हि ठिदा हणदि मुणिवरा कम्म। तम्हा दु झाणमेव हि उत्तमअट्ठस्स पडिकमणं॥ उत्तमअट्ठ आदा तम्हि ठिदा हणदि [(उत्तम) वि-(अट्ठ) 1/1] (आद) 1/1 (त) 7/1 सवि (ठिद) भूकृ 1/2 (हण) व 3/1 सक उत्तम प्रयोजन आत्मा उसमें दृढ़तापूर्वक लगे हुए समाप्त/नष्ट कर देता मुणिवरा कम्म तम्हा उत्तम मुनि कर्म को इसलिए पादपूरक झाणमेव (मुणिवर) 1/2 (कम्म) 2/1 अव्यय अव्यय [(झाणं)+ (एव)] झाणं (झाण) 1/1 एव (अ) = ही अव्यय [(उत्तम) वि-(अट्ठ) 6/1] (पडिकमण) 1/1 ध्यान उत्तमअट्ठस्स पडिकमणं पादपूरक उत्तम प्रयोजन का प्रतिक्रमण अन्वय- आदा उत्तमअटुं तम्हि मुणिवरा ठिदा कम्मं हणदि तम्हा दु झाणमेव हि उत्तमअट्ठस्स पडिकमणं। अर्थ- (शुद्ध) आत्मा (समत्वभाव) (जीवन का) उत्तम प्रयोजन (है) उस (आत्मा की प्राप्ति) में उत्तम मुनि दृढ़तापूर्वक लगे हुए (रहते हैं) (और) (ऐसा प्रत्येक मुनि) कर्म को समाप्त/नष्ट कर देता है इसलिए (समत्वंभाव की साधना में) ध्यान (आत्माभिमुखता) ही उत्तम प्रयोजन का (हेतु होने से) प्रतिक्रमण (है)। नियमसार (खण्ड-2) (28)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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