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86. उम्मग्गं परिचत्ता जिणमग्गे जो दु कुणदि थिरभाव।
सो पडिकमणं उच्चइ पडिकमणमओ हवे जम्हा॥
उम्मग्गं परिचत्ता जिणमग्गे
(उम्मग्ग) 2/1 (परिचत्ता) संकृ अनि [(जिण)-(मग्ग) 7/1] (ज) 1/1 सवि
मिथ्यामार्ग को छोड़कर जिनमार्ग में .
दु
अव्यय
111.-.111
कुणदि
थिरभावं
पडिकमणं उच्चइ पडिकमणमओ
(कुण) व 3/1 सक [(थिर) वि (भाव) 2/1] (त) 1/1 सवि (पडिकमण) 1/1 (उच्चइ) व कर्म 3/1 अनि (पडिकमणमअ) 1/1 वि (हव) व 3/1 अक
पादपूरक करता है स्थिर आचरण वह प्रतिक्रमण कहा जाता है आत्मध्यानसहित होता है क्योंकि
हवे
जम्हा
अव्यय
T 11.
अन्वय- जो दु उम्मग्गं परिचत्ता जिणमग्गे थिरभावं कुणदि सो पडिकमणं उच्चइ जम्हा पडिकमणमओ हवे।
अर्थ- जो (देहात्मवादी) मिथ्यामार्ग को छोड़कर (अंतरंग में स्थित होता हुआ) जिन (आत्मध्यान के) मार्ग में स्थिर आचरण करता है वह प्रतिक्रमण (करनेवाला) कहा जाता है, क्योंकि (वह) (उस समय) आत्मध्यानसहित होता
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नियमसार (खण्ड-2)