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84.
आराहणाइ
वट्टइ
मोत्तूण
विराहणं
विसेसेण
आराहणाड़ वह मोत्तूण विराहणं विसेसेण । सो पडिकमणं उच्चइ पडिकमणमओ हवे जम्हा ॥
सो
पडिकमणं
उच्चइ
पडिकमणमओ
हवे
जम्हा
( आराहणा) 7/1
(वट्ट) व 3 / 1 अक
(मोत्तूण) संकृ अनि
(विराहणा) 2 / 1
(विसेसेण) 3/1
(20)
तृतीयार्थक अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
(पडिकमण) 1/1
(उच्चइ) व कर्म 3 / 1 अनि
( पडिकमणमअ) 1 / 1 वि
(हव) व 3 / 1 अक
अव्यय
(स्व) आराधना में
प्रवृत्त करता है
छोड़कर
अशुद्ध आराधना को
पूर्णरूप से
वह
प्रतिक्रमण
कहा जाता है
आत्मध्यानमय
होता है
क्योंकि
अन्वय- विराहणं विसेसेण मोत्तूण आराहणार वट्टइ सो पडिकमणं उच्चइ जम्हा पडिकमणमओ हवे।
अर्थ - (जो) अशुद्ध आराधना को पूर्णरूप से छोड़कर (स्व) आराधना में (अंतरंग में स्थित होकर ) प्रवृत्ति करता है वह प्रतिक्रमण (करनेवाला) कहा जाता है, क्योंकि (वह) ( उस समय ) आत्मध्यानमय होता है।
नियमसार (खण्ड-2)