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83. मोत्तूण वयणरयणं रागादीभाववारणं किच्चा। - अप्पाणं जो झायदि तस्स दु होदि त्ति पडिकमणं॥
मोत्तूण वयणरयण
(मोत्तूण) संकृ अनि [(वयण)-(रयणा) 2/1]
छोड़कर (शब्द) उच्चारण के कौशल को
रागादीभाववारणं
रागादि भावों (के कर्तृत्व) का निवारण करके आत्मा
किच्चा अप्पाणं
झायदि
ध्यान करता है
[(राग)+(आदीभाववारणं)] [(राग)-(आदी-आदि)(भाव)-(वारण) 2/1] (किच्चा) संकृ अनि (अप्पाण) 2/1 (ज) 1/1 सवि (झा-झाय) व 3/1 सक 'य' विकरण (त) 6/1 सवि अव्यय [(होदि)+ (इति)] होदि (हो) व 3/1 अक इति (अ) = (पडिकमण) 1/1
तस्स
उसके पादपूरक
होदि त्ति
होता है शब्दस्वरूपद्योतक प्रतिक्रमण
पडिकमणं
अन्वय- वयणरयणं मोत्तूण रागादीभाववारणं किच्चा जो अप्पाणं झायदि तस्स दु पडिकमणं होदि त्ति।
अर्थ- (प्रतिक्रमण के बाह्य) (शब्द) उच्चारण के कौशल को छोड़कर रागादि भावों (के कर्तृत्व) का निवारण करके जो (अंतरंग में स्थित होकर) (निज) आत्मा का ध्यान करता है उसके प्रतिक्रमण (अतीत के दोषों का त्याग*) होता
1. *
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'आदि' का 'आदी' किया गया है। टीकाः पद्मप्रभमलधारी देव
नियमसार (खण्ड-2)
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