SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 82. एरिसभेदब्भासे मज्झत्थो होदि तेण चारित्तं। तं दिढकरणणिमित्तं पडिक्कमणादी पवक्खामि॥ एरिसभेदब्भासे मज्झत्थो होदि तेण चारित्तं [(एरिसभेद)+(अब्भासे)] [(एरिस) वि-(भेद)(अब्भास) 7/1] (मज्झत्थ) 1/1 वि (हो) व 3/1 अक (त) 3/1 सवि (चारित्त) 1/1 (त) 2/1 सवि [(दिढ) वि-(करण)(णिमित्तं) 2/1] द्वितीयार्थक अव्यय [(पडिक्कमण)+(आदी)] [(पडिक्कमण)(आदि) 2/2] (पवक्ख) भवि 1/1 सक ऐसे भेद का अभ्यास होने पर अंतरंग में स्थित होता है उससे आचरण उसको दृढ़ करने के प्रयोजन दिढकरणणिमित्तं पडिक्कमणादी प्रतिक्रमण वगैरह को पवक्खामि कहूँगा अन्वय- एरिसभेदभासे मज्झत्थो होदि तेण चारित्तं तं दिढकरणणिमित्तं पडिक्कमणादी पवक्खामि। अर्थ- ऐसे (पूर्वोक्त) (स्वभाव-विभाव के) भेद का अभ्यास होने पर (जो) (बाह्य उलझनों को छोड़कर) अंतरंग में स्थित होता है उससे (जो) (अंतरंग आत्मध्यान रूपी) आचरण (घटित होता है) उसको दृढ़ करने के प्रयोजन से (मैं) प्रतिक्रमण वगैरह को कहूँगा। (18) . नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy