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________________ 80. णाहं रागो दोस ण चेव मोहो ण कारणं तेसिं कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता a कत्तीणं णाहं रागो दोसो ण चेव मोहो ण कारणं तेसिं। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता व कत्तीणं ।। (16) [(ण) + (अहं)] ण (अ) = नहीं अहं (अम्ह) 1/1 स (राग) 1 / 1 (दोस) 1 / 1 अव्यय अव्यय ( मोह) 1 / 1 अव्यय (कारण) 1 / 1 (त) 6/2 सवि (g) 1/1 fa अव्यय अव्यय (कारइदु) 1/1 वि (अणुमंतु ) 1 / 1 वि अव्यय (कत्ति) 6/2 वि नहीं मैं राग 1 ही मोह नहीं कारण उनका करनेवाला न तो भी करानेवाला अनुमोदना करनेवाला नही करनेवालों की अन्वय- णाहं रागो दोसो ण चेव मोहो ण कारणं तेसिं ण कत्ता व कारइदा कत्तीणं अणुमंता हि । अर्थ- मैं राग नहीं (हूँ), (मैं) द्वेष (नहीं हूँ) न ही मोह हूँ उन (तीनों) का कारण भी नहीं हूँ। (अपने मूल शुद्ध स्वरूप के अवलोकन से ज्ञात होता है कि) न तो ( मैं ) ( इन सबका) करनेवाला (हूँ), न ही करानेवाला (और) करनेवालों की अनुमोदना करनेवाला भी नहीं हूँ) । (अतः मैं शुद्ध स्वरूप में इन विभाव पर्यायों से पूर्णतया परे हूँ) । (विभाव पर्यायों के लिए कृत, कारित, अनुमोदना का भाव मूर्च्छित अवस्था का द्योतक है)। नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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