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78. णाहं मग्गणठाणो णाहं गुणठाण जीवठाणो ण।
कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता व कत्तीण।।
णाहं
नहीं
मार्गणास्थान
मग्गणठाणो णाहं
नहीं
*गुणठाण जीवठाणो
[(ण)+ (अहं)] ण (अ) = नहीं अहं (अम्ह) 1/1 स (मग्गणठाण) 1/1 [(ण)+(अहं)] ण (अ) = नहीं अहं (अम्ह) 1/1 स (गुणठाण) 1/1 (जीवठाण) 1/1 अव्यय (कत्तु) 1/1 वि अव्यय अव्यय (कारइदु) 1/1 वि (अणुमंतु) 1/1 वि
अव्यय (कत्ति) 6/2 वि
गुणस्थान जीवस्थान
कत्ता
करनेवाला न तो
कारइदा अणुमता णेव कत्तीणं
करानेवाला अनुमोदना करनेवाला न ही करनेवालों की .
अन्वय- णाहं मग्गणठाणो णाहं गुणठाण ण जीवठाणो ण कत्ता णेव कारइदा कत्तीणं अणुमंता हि।
अर्थ- मैं मार्गणास्थान नहीं (हूँ), मैं गुणस्थान नहीं (हूँ), न (मैं) जीवस्थान (हँ)। (अपने मूल शुद्ध स्वरूप के अवलोकन से ज्ञात होता है कि) न तो (मैं) (उन सबका) करनेवाला (हूँ), न ही करानेवाला (और) करनेवालों की अनुमोदना करनेवाला भी (नहीं हूँ)। (अतः मैं शुद्ध स्वरूप में इन विभाव पर्यायों से पूर्णतया परे हूँ)। (विभाव पर्यायों के लिए कृत, कारित, अनुमोदना का भाव मूर्च्छित अवस्था का द्योतक है)। * प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है।
(पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517)
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नियमसार (खण्ड-2)