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________________ 77. णाहणारयभावो तिरियत्थो मणुवदेवपज्जाओ। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता व कत्तीणं।। णाहं . नहीं [(ण)+ (अहं)] ण (अ) = नहीं अहं (अम्ह) 1/1 स णारयभावो [(णारय)-(भाव) 1/1] तिरियत्थो (तिरियत्थ) 1/1 वि मणुवदेवपज्जाओ [(मणुव)-(देव) (पज्जाअ) 1/1] कत्ता (कत्तु) 1/1 वि अव्यय अव्यय (कारइदु) 1/1 वि अणुमंता (अणुमंतु) 1/1 वि अव्यय (कत्ति) 6/2 वि नरक पर्याय तिर्यंच स्थित मनुष्य और देव पर्याय करनेवाला न तो . भी कारइदा करानेवाला अनुमोदना करनेवाला न ही करनेवालों की णेव कत्तीणं अन्वय- णाहं णारयभावो तिरियत्थो मणुवदेवपज्जाओ ण कत्ता णेव कारइदा कत्तीणं अणुमंता हि। अर्थ- मैं नरकपर्याय, तिर्यंच स्थित (पर्याय), मनुष्य और देवपर्याय नहीं (हूँ)। (अपने मूल शुद्ध स्वरूप के अवलोकन से ज्ञात होता है कि) न तो (मैं) (उन विभाव पर्यायों का) करनेवाला (हूँ), न ही (उनको) करानेवाला (हूँ) (और) करनेवालों की अनुमोदना करनेवाला भी (नहीं हूँ)। (अतः मैं शुद्ध स्वरूप में इन विभाव पर्यायों से पूर्णतया परे हूँ)। (विभाव पर्यायों के लिए कृत, कारित, अनुमोदना का भाव मूर्च्छित अवस्था का द्योतक है)। नोटः प्रस्तुत खण्ड में अनुवाद को स्पष्ट करने के लिए संपादक द्वारा कोष्ठकों का प्रयोग किया गया है। नियमसार (खण्ड-2) (13)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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