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186. ईसाभावेण पुणो केई जिंदंति सुंदरं मग्गं।
तेसिं वयणं सोचाऽभत्तिं मा कुणह जिणमग्गे।।
ईसाभावेण'
पुणो
ईर्ष्या भाव से तो भी कोई भी निंदा करते हैं
क३
जिंदति
मनोज्ञ
मार्ग
उनके
[(ईसा)-(भाव) 3/1] अव्यय अव्यय (णिंद) व 3/2 सक (सुंदर) 2/1 वि (मग्ग) 2/1 (त) 6/2 सवि (वयण) 2/1 [(सोच्चा)+ (अभत्ति)] सोच्चा (सोच्चा) संकृ अनि अभत्तिं (अभत्ति) 2/1 वि अव्यय (कुण) विधि 2/2 सक [(जिण)-(मग्ग) 7/1]
वचन
वयणं • सोच्चाऽभत्तिं
सुनकर अभक्ति मत करो जिनमार्ग के प्रति
कुणह जिणमग्गे
अन्वय- केई ईसाभावेण सुंदरं मग्गं जिंदंति पुणो तेसिं वयणं सोच्चाऽभत्तिं जिणमग्गे मा कुणह।
__अर्थ- (यदि) कोई भी ईर्ष्या भाव से (इस) मनोज्ञ मार्ग की निंदा करते हैं तो भी उनके वचन सुनकर (तुम) जिनमार्ग के प्रति अभक्ति मत करो।
1.
कारण व्यक्त करनेवाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। __(प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 36)
नियमसार (खण्ड-2)
(129)