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187. णियभावणाणिमित्तं मए कदं णियमसारणामसुदं । जिणोवदेसं पुव्वावरदोसणिम्मुक्कं ।।
णच्चा
णियभावणाणिमित्तं [ (णिय) वि- (भावणा) -
(forfire) 1/1]
(अम्ह) 3/1 सवि
(कद) भूक 1/1 अनि
[(णियमसार) - (णाम) अ
मए
कदं
णियमसारणामसुदं
णच्चा
जिणोवदेसं
पुव्वावरदोस
णिम्मुक्कं
(130)
(सुद) 1 / 1
]
(णच्चा) संकृ अनि
[(जिण) + (उवदेसं)]
[(जिण) - (उवदेस) 2/1]
[(पुव्वावर) वि- (दोस) -
( णिम्मुक्क) 1 / 1 वि]
निज आचरण के
निमित्त
मेरे द्वारा
रचा गया
नियमसार नामक
शास्त्र
जानकर
जिनेन्द्रदेव के उपदेश
को
पूर्ववर्ती और परवर्ती
दोषरहित
अन्वय- जिणोवदेसं पुव्वावरदोसणिम्मुक्कं णच्चा मए णियभावणा
णिमित्तं नियमसारणामसुदं कदं ।
अर्थ- जिनेन्द्रदेव के पूर्ववर्ती और परवर्ती दोषरहित उपदेश को (अच्छी प्रकार से) जानकर मेरे द्वारा निज आचरण के निमित्त (यह) नियमसार नामक शास्त्र
रचा गया ( है ) ।
नियमसार (खण्ड-2)