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________________ 185. णियमं णियमस्स फलं णिद्दिटुं पवयणस्स भत्तीए। पुव्वावरविरोधो जदि अवणीय पूरयंतु समयण्हा।। णियमं णियमस्स फलं णिदिटुं पवयणस्स भत्तीए पुत्वावरविरोधो (णियम) 1/1 नियम (णियम) 6/1 नियम का (फल) 1/1 फल (णिद्दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि प्रतिपादित किया गया (पवयण) 6/1 प्रवचन की (भत्ति) 3/1 भक्ति से [(पुव्वावर) वि- पूर्ववर्ती और परवर्ती (विरोध) 1/1] विरोध अव्यय यदि (अवणी) संकृ दूर करके (पूरयंतु) विधि 3/2 सक अनि पूर्ति करें (समयण्ह) 2/2 वि सिद्धान्त को जाननेवाले जदि अवणीय पूरयंतु समयण्हा अन्वय- पवयणस्स भत्तीए णियमं णियमस्स फलं णिद्दिटुं जदि पुव्वावरविरोधो समयण्हा अवणीय पूरयंतु। ___अर्थ- (आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं) (कि) प्रवचन की भक्ति से (यहाँ) (मेरे द्वारा) नियम (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र) और (इन तीनों) नियम का फल प्रतिपादित किया गया (है)। यदि (इसमें कुछ) पूर्ववर्ती और परवर्ती विरोध (हो) (तो) सिद्धान्त को जाननेवाले (उसे) दूर करके पूर्ति करें। (128) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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