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184. जीवाण पुग्गलाणं गमणं जाणेहि जाव धम्मत्थी।
धम्मत्थिकायभावे तत्तो परदो ण गच्छंति॥
जीवाण
जीवों का पुद्गलों का
पुग्गलाणं
(जीव) 6/2 (पुग्गल) 6/2 (गमण) 2/1 (जाण) विधि 2/1 सक
गमण
गमन
जाणेहि
जाव
अव्यय
जानो जहाँ तक धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय के
धम्मत्थी (धम्मत्थि) 1/1 धम्मत्थिकायभावे [(धम्मत्थिकाय)-(अभाव)
7/1]
(त) 5/1 सवि परदो
अव्यय
अभाव में
उससे
आगे
अव्यय
नहीं जाते हैं
गच्छंति
(गच्छ) व 3/2 सक
• अन्वय- जाव धम्मत्थी जीवाण पुग्गलाणं गमणं जाणेहि धम्मत्थिकायभावे तत्तो परदो ण गच्छंति।
अर्थ- जहाँ तक धर्मास्तिकाय है (वहाँ तक) जीव और पुद्गलों का गमन जानो। धर्मास्तिकाय के अभाव में उससे आगे (जीव और पुद्गल) नहीं जाते हैं।
नियमसार (खण्ड-2)
(127)