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________________ 183. णिव्वाणमेव सिद्धा सिद्धा णिव्वाणमिदि समुट्ठिा। . कम्मविमुक्को अप्पा गच्छइ लोयग्गपज्जंत॥ सिद्धा णिव्वाणमेव [(णिव्वाणं)+(एव)] णिव्वाणं (णिव्वाण) 1/1 निर्वाण एव (अ) = ही (सिद्ध) 1/1 वि (अपभ्रंश) सिद्ध सिद्धा (सिद्ध) 1/1 वि (अपभ्रंश) सिद्ध णिव्वाणमिदि [(णिव्वाणं)+(इदि)] णिव्वाणं (णिव्वाण) 1/1 निर्वाण इदि (अ) = इस प्रकार इस प्रकार समुट्ठिा (समुद्दिठ्ठ)भूकृ 1/1 अनि(अपभ्रंश) कही गई कम्मविमुक्को [(कम्म)-(विमुक्क) कर्म से भूक 1/1 अनि] मुक्त/छूटा हुआ (अप्प) 1/1 आत्मा (गच्छ) व 3/1 सक जाता है लोयग्गपज्जतं (लोयग्ग)-(पज्जंत) 2/1 वि] लोक के अग्रभाग पर्यन्त अन्वय- णिव्वाणमेव सिद्धा समुद्दिट्ठा सिद्धा णिव्वाणमिदि कम्मविमुक्को अप्पा लोयग्गपज्जतं गच्छइ। अर्थ- निर्वाण ही सिद्ध (अवस्था) कही गई (है) (और) (कही गई) सिद्ध (अवस्था ही) निर्वाण (है)। कर्म से मुक्त/छूटा हुआ आत्मा लोक के अग्रभाग पर्यन्त जाता है (और) इस प्रकार (वह आत्मा सिद्ध समझा जाता है)। नोटः संपादक द्वारा अनूदित अप्पा गच्छइ (126) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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