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________________ 181. णवि कम्मं णोकम्मंणवि चिंता णेव अहरुबाणि। णवि धम्मसुक्कझाणे तत्थेव य होइ णिव्वाणं॥ णवि कम्म णोकम्म णवि ___कर्म नोकर्म चिंता णेव अट्टद्दाणि णवि धम्मसुक्कझाणा' तत्थेव अव्यय (कम्म) 1/1 (णोकम्म) 1/1 अव्यय (चिंता) 1/1 चिन्ता अव्यय [(अट्ट)-(रुद्द) 1/2] आर्त और रौद्रध्यान अव्यय [(धम्म)-(सुक्कझाण) 1/2] धर्म और शुक्लध्यान [(तत्थ)+ (एव)] तत्थ (अ)= वहाँ एव (अ) = ही अव्यय पादपूरक . (हो) व 3/1 अक होता है (णिव्वाण) 1/1 निर्वाण वहाँ य णिव्वाणं अन्वय- णवि कम्मं णोकम्मं णवि चिंता णेव अहरुद्दाणि य णवि धम्मसुक्कझाणे तत्थेव णिव्वाणं होइ। अर्थ- (जहाँ) अर्थात् जिस परम आत्मा में न कर्म (है) (न) नोकर्म (है), न चिन्ता (है), न आर्त और रौद्र ध्यान (है) तथा न धर्म और शुक्ल ध्यान (है) वहाँ ही (वह अवस्था ही) निर्वाण होता है/होती है। 1. यहां ‘धम्मसुक्कझाणे' के स्थान पर धम्मसुक्कझाणा' पाठ होना चाहिए। (124) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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