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177. जाइजरमरणरहियं परमं कम्मट्ठवज्जियं सुद्ध।
णाणाइचउसहावं अक्खयमविणासमच्छेयं।
जाइजरमरणरहियं [(जाइ)-(जरा-जर)- जन्म-जरा-मरण से
(मरण)-(रहिय) 1/1 वि] रहित परमं (परम) 1/1 वि
सर्वोत्तम कम्मढ़वज्जियं [(कम्म)-(अट्ठ) वि
आठ कर्मों से । (वज्जिय) 1/1 वि] रहित सुद्धं
(सुद्ध) 1/1 वि णाणाइचउसहावं [(णाण)+(आइचउसहावं)]
[(णाण)-(आइ)- ज्ञानादि चार
(चउ) वि-(सहाव) 1/1 वि] स्वभाववाले अक्खयमविणास- [(अक्खयं)+(अविणासं)+ मच्छेयं (अच्छेयं)]
अक्खयं (अक्खय) 1/1 वि अक्षय अविणासं (अविणास) 1/1 वि अविनाशी अच्छेयं (अच्छेय) 1/1 वि अखण्डित
अन्वय- जाइजरमरणरहियं परमं कम्मट्टवज्जियं सुद्धं णाणाइचउसहावं अक्खयमविणासमच्छेयं।
अर्थ- (वह सिद्ध परमात्मा) जन्म-जरा-मरण से रहित, सर्वोत्तम, आठ कर्मों से रहित, शुद्ध, ज्ञानादि चार स्वभाववाले, अक्षय, अविनाशी और अखण्डित (है)।
1. 2. (120)
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'जरा' का 'जर' किया गया है। अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख और अनंतवीर्य।
नियमसार (खण्ड-2)