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176. आउस्स खयेण पुणो णिण्णासो होइ सेसपयडीणं।
पच्छा पावइ सिग्धं लोयग्गं समयमेत्तेण॥
आउस्स
आयुकर्म के क्षय के कारण
खयेण
फिर
पुणो णिण्णासो
होइ
सेसपयडीणं पच्छा पावइ सिग्धं लोयग्गं समयमेत्तेण
(आउ) 6/1 (खय) 3/1 अव्यय (णिण्णास) 1/1 (हो) व 3/1 अक [(सेस) वि-(पयडि) 6/2] अव्यय (पाव) व 3/1 सक
अव्यय (लोयग्ग) 2/1 [(समय)-(मेत्त) 3/1→7/1]
विनाश होता है शेष प्रकृतियों का अनन्तर प्राप्त करता है शीघ्रता से लोक के अग्रभाग को समयमात्र में
अन्वय- पुणो आउस्स खयेण सेसपयडीणं णिण्णासो होइ पच्छा सिग्धं समयमेत्तेण लोयग्गं पावइ।
अर्थ- फिर आयुकर्म के क्षय के कारण शेष (कर्म) प्रकृतियों का क्षय हो जाता है अनन्तर (वे केवली) शीघ्रता से समयमात्र में लोक के अग्रभाग को प्राप्त करते हैं।
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
नियमसार (खण्ड-2)
(119)