SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 175. ठाणणिसेज्जविहारा ईहापुव्वं ण होइ केवलिणो। तम्हा ण होइ बंधो साक्खहँ मोहणीयस्स। खड़ा रहना,बैठना और विहार करना इच्छा से युक्त नहीं होता है । केवली का इसलिए होइ तम्हा ठाणणिसेज्जविहारा [(ठाण)-(णिसेज्ज) (विहार) 1/2] ईहापुव्वं [(ईहा)-(पुव्व) 1/1 वि] अव्यय (हो) व 3/1 अक केवलिणो (केवलि) 6/1 वि अव्यय अव्यय होइ (हो) व 3/1 अक बंधो (बंध) 1/1 साक्खटुं [(स)+(अक्ख)+(अट्ठ)] [(स)वि-(अक्ख) (अट्ठ)1/1] मोहणीयस्स (मोहणीय) 6/1-5/1 नहीं होता है बंध इन्द्रियविषय-सहित मोहनीय कर्म के कारण अन्वय- केवलिणो ठाणणिसेज्जविहारा ईहापुव्वं ण होइ तम्हा बंधो ण होइ मोहणीयस्स साक्खट्ठा अर्थ- केवली का खड़े रहना, बैठना और विहार करना इच्छा से युक्त नहीं होता है, इसलिए (उनके) (कर्म) बंध नहीं होता है। मोहनीय कर्म के कारण (संसारी जीव के) इन्द्रियविषय (तृष्णा)-सहित होता है। (इसलिए कर्मबंध होता है)। 1. समास के अन्त में होने से यहाँ 'पुव्व' का अर्थ है ‘से युक्त'। कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) कारण अर्थ में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। (प्राकृत-व्याकरण,पृष्ठ 42) (118) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy