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174. ईहापुव्वं वयणं जीवस्स य बंधकारणं होइ।
ईहारहियं वयणं तम्हा णाणिस्स ण हि बंधो।
ईहापुव्वं' वयणं जीवस्स
बंधकारणं
[(ईहा)-(पुव्व) 1/1 वि] (वयण) 1/1 (जीव) 6/1
अव्यय [(बंध)-(कारण) 1/1] (हो) व 3/1 अक [(ईहा)-(रहिय) 1/1 वि] (वयण) 1/1 अव्यय (णाणि) 1/1 वि
होइ
इच्छा से युक्त वचन जीव के पादपूरक बंध का कारण होता है इच्छारहित वचन इसलिए केवलज्ञानी के नहीं निस्सन्देह
ईहारहियं वयण तम्हा णाणिस्स
अव्यय
वि
अव्यय (बंध) 1/1
बंध
अन्वय- ईहापुव्वं वयणं जीवस्स य बंधकारणं होइ णाणिस्स वयणं ईहारहियं तम्हा हि ण बंधो।
· अर्थ- इच्छा से युक्त वचन जीव के बंध के कारण होता है। केवलज्ञानी के वचन इच्छारहित (होते हैं), इसलिए निस्सन्देह (केवलज्ञानी के) (कर्म) बंध नहीं (होता है)।
1.
समास के अन्त में होने से यहाँ 'पुव्व' का अर्थ है ‘से युक्त' ।
नियमसार (खण्ड-2)
(117)