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171. अप्पाणं विणु णाणं णाणं विणु अप्पगो ण संदेहो।
तम्हा सपरपयासं गाणं तह दंसणं होदि।।
अप्पाणं
आत्मा को जानो
विणु
णाण
ज्ञान
णाण
विणु
ज्ञान जानो
अप्पगो
आत्मा
(अप्पाण) 2/1 (विण) विधि 2/1 सक (अपभ्रंश) (णाण) 2/1 (णाण) 1/1 (विण) विधि 2/1 सक (अपभ्रंश) (अप्पग) 1/1 . 'ग' स्वार्थिक अव्यय (संदेह) 1/1
अव्यय [(स) वि-(पर) वि(पयास) 1/1 वि] (णाण) 1/1 अव्यय (दसण) 1/1 (हो) व 3/1 अक
संदेहो तम्हा सपरपयासं
नहीं संदेह इसलिए स्व-परप्रकाशक
ज्ञान
णाणं तह
तथा
दर्शन
दसणं होदि
अन्वय- अप्पाणं णाणं विणु विणु णाणं अप्पगो संदेहो ण तम्हा णाणं तह दंसणं सपरपयासं होदि।
अर्थ- आत्मा को ज्ञान जानो (और) जानो (कि) ज्ञान आत्मा (है) (इसमें) संदेह नहीं (है)। इसलिए ज्ञान तथा दर्शन स्व-परप्रकाशक है। .
1.
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु पयासयं' के स्थान पर ‘पयासं' किया गया है।
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नियमसार (खण्ड-2)