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169. लोयालोयं जाणइ अप्पाणं णेव केवली भगवं।
जइ कोइ भणइ एवं तस्स य किं दूसणं होइ।।
लोयालोयं जाणइ अप्पाणं
णेव
केवली भगवं
भगवान
कोइ भणइ
[(लोय)-(अलोय) 2/1] 'लोक-अलोक को (जाण) व 3/1 सक जानता है (अप्पाण) 2/1
आत्मा को अव्यय
नहीं (केवलि) 1/1 वि केवली (भगव) 1/1 अव्यय
यदि अव्यय
कोई (भण) व 3/1 सक
कहता है अव्यय (त) 6/1 सवि
उसका अव्यय
पादपूरक (किं) 1/1 सवि
क्या (दूसण) 1/1
दोष (हो) व 3/1 अक
तस्स
अन्वय- केवली भगवं लोयालोयं जाणइ अप्पाणं णेव जइ कोइ एवं भणइ तस्स य किं दूसणं होइ।
___ अर्थ- केवली भगवान (व्यवहार/बाह्यदृष्टि से) लोक-अलोक को जानते हैं (किन्तु) (व्यवहार/बाह्यदृष्टि से) (अपनी) आत्मा को नहीं (जानते हैं)। यदि कोई ऐसा कहता है (तो) उसका क्या दोष है?
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नियमसार (खण्ड-2)