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________________ 165. णाणं अप्पपयासं णिच्छयणयएण दंसणं तम्हा। अप्पा अप्पपयासो णिच्छयणयएण दंसणं तम्हा॥ णाणं अप्पपयासं णिच्छयणयएण दसणं तम्हा (णाण) 1/1 ज्ञान [(अप्प)-(पयास) 1/1 वि] स्व को प्रकाशित करनेवाला (णिच्छयणयअ) 3/1 निश्चयनय से . 'अ' स्वार्थिक (दसण) 1/1 दर्शन अव्यय इसलिए (अप्प) 1/1 आत्मा [(अप्प)-(पयास) 1/1 वि] स्व को प्रकाशित करनेवाला (णिच्छयणयअ) 3/1 निश्चयनय से 'अ' स्वार्थिक (दसण) 1/1 दर्शन अव्यय इसलिए अप्पा अप्पपयासो णिच्छयणयएण दसणं तम्हा अन्वय- णिच्छयणयेण णाणं अप्पपयासं तम्हा सणं णिच्छयणयेण अप्पा अप्पपयासो तम्हा दंसणं। अर्थ- निश्चयनय से (आत्मदृष्टि) ज्ञान स्व को प्रकाशित करनेवाला (है), इसलिए दर्शन (भी) (स्व को प्रकाशित करनेवाला है)। निश्चयनय से आत्मा स्व को प्रकाशित करनेवाला (है), इसलिए दर्शन (भी) (स्व को प्रकाशित करनेवाला है)। 1. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘पयासयं' के स्थान पर ‘पयासं' तथा 'पयासयो' के स्थान पर ‘पयासो' किया गया है। (108) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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