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162. णाणं परप्पयासं तइया णाणेण दंसणं भिण्णं।
ण हवदि परदव्वगयं दसणमिदि वण्णिदं तम्हा॥
.
ज्ञान
णाणं परप्पयासं
पर को प्रकाशित करनेवाला
तइया णाणेण दसणं
ज्ञान से
दर्शन भिन्न
भिण्णं
हवदि
(णाण) 1/1 [(पर) वि-(प्पयास) 1/1 वि] अव्यय (णाण) 3/1 (दसण) 1/1 (भिण्ण) 1/1 वि
अव्यय (हव) व 3/1 अक [(पर) वि-(दव्व)(गय) भूकृ 1/1 अनि] [(दसणं)+ (इदि)] दसणं (दंसण) 1/1 इदि (अ) = (वण्ण) भूक 1/1 (त) 5/1 सवि
परदव्वगयं
होता है परद्रव्य में गया हुआ
दसणमिदि
वण्णिदं
दर्शन शब्दस्वरूपद्योतक वर्णित उस कारण से
तम्हा
अन्वय- णाणं परप्पयासं वण्णिदं दंसणमिदि परदव्वगयं ण तम्हा तइया णाणेण दंसणं भिण्णं हवदि ।
अर्थ- ज्ञान (केवल) पर को प्रकाशित करनेवाला वर्णित (है) (और) दर्शन परद्रव्य में गया हुआ नहीं (है) अर्थात् पर को प्रकाशित करनेवाला नहीं है। उस कारण से तो ज्ञान से दर्शन भिन्न होता है (होगा)।
1.
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘प्पयासयं' के स्थान पर 'प्पयासं' किया गया है।
नियमसार (खण्ड-2)
(105)