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161. णाणं परप्पयासं दिट्ठी अप्पप्पयासया चेव।
अप्पा सपरपयासो होदि त्ति हि मण्णसे जदि हि॥
णाणं परप्पयासं दिट्ठी अप्पप्पयासया
अप्पा सपरपयासो
(णाण) 1/1
ज्ञान [(पर) वि-(प्पयास) 1/1 वि] पर प्रकाशक (दिट्ठि) 1/1
दर्शन [(अप्प)-(प्पयासय-प्पयासया) स्वप्रकाशक 1/1 वि अव्यय (अप्प) 1/1
आत्मा [(स) वि-(पर) वि स्वपरप्रकाशक (पयास) 1/1 वि] [(होदि) + (इति)] होदि (हो) व 3/1 अक इति (अ) = ऐसा अवयय
पादपूरक (मण्ण) व 2/1 सक मानता है अव्यय
यदि अव्यय
पादपूरक
होदि त्ति
ऐसा
मण्णसे जदि
अन्वय- णाणं परप्पयासं चेव दिट्ठी अप्पपयासया अप्पा सपरपयासो जदि हि मण्णसे होदि ति हि।
- अर्थ- ज्ञान परप्रकाशक ही (है) (और) दर्शन स्वप्रकाशक ही (है)(तथा) आत्मा स्वपरप्रकाशक है । यदि (तू) ऐसा मानता है (तो) (ठीक) (नहीं है)।
1.
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘प्पयासयं' के स्थान पर 'प्पयासं' तथा पयासयो' के स्थान पर ‘पयासो' किया गया है।
नियमसार (खण्ड-2)
(104)