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160. जुगवं वइ णाणं केवलणाणिस्स दंसणं च तहा।
दिणयरपयासतावं जह वइ तह मुणेयव्व।।
वट्टइ
णाणं
अव्यय (वट्ट) व 3/1 अक (णाण) 1/1 (केवलणाणि) 6/1 वि (दसण) 1/1
केवलणाणिस्स दसणं
अव्यय
एक ही साथ . विद्यमान रहता है ज्ञान केवलज्ञानी का दर्शन पादपूरक तथा सूर्य का प्रकाश
और ताप जिस प्रकार विद्यमान रहता है उस प्रकार जानना चाहिए
अव्यय [(दिणयर)-(पयास)(ताव) 1/1]
दिणयरपयासतावं'
अव्यय
(वट्ट) व 3/1 अक अव्यय (मुण) विधिकृ 1/1
मुणेयव्वं
अन्वय- जह दिणयरपयासतावं जुगवं वइ तह केवलणाणिस्स णाणं तहा दंसणं च वइ मुणेयव्वं।
अर्थ- जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश और ताप एक ही साथ विद्यमान रहता है उस प्रकार केवलज्ञानी का ज्ञान तथा दर्शन (एक ही साथ) विद्यमान रहता है। (इस प्रकार) (यह) जानना चाहिए। 1. पुल्लिंग का नपुंसकलिंग में प्रयोग हुआ है (लिंग परिवर्तन)। नियमसार (खण्ड-2)
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