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________________ 154. जदि सक्कदि काएं जे पडिकमणादिं करेज्ज झाणमयं। सत्तिविहीणो जा जइ सहहणं चेव कायव्व।। यदि जदि सक्कदि पडिकमणादिं अव्यय (सक्क) व 3/1 अक समर्थ होता है (का) हेक करने के लिए . अव्यय पादपूरक [(पडिकमण)+(आदि)] [(पडिकमण)-(आदि) 2/1] प्रतिक्रमण आदि (कर) विधि 3/1 सक करे (झाणमय) 2/1 वि ध्यानमय [(सत्ति)-(विहीण) शक्तिरहित 1/1 वि] अव्यय जब तक करेज्ज झाणमयं सत्तिविहीणो जा जइ अव्यय यदि श्रद्धान सद्दहणं चेव (सद्दहण) 1/1 अव्यय (का) विधिकृ 1/1 कायव्वं किया जाना चाहिये अन्वय- जदि पडिकमणादि कादं जे सक्कदि झाणमयं करेज्ज जा जइ सत्तिविहीणो सहहणं चेव कायव्वं। __ अर्थ- यदि (कोई) प्रतिक्रमण आदि करने के लिए समर्थ है (तो) (वह) ध्यानमय (प्रतिक्रमण) करे। जब तक यदि (कोई) शक्तिरहित (है) (तब तक) श्रद्धान ही किया जाना चाहिये। (96) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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