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152. पडिकमणपहुदिकिरियं कुव्वंतो णिच्छयस्स चारित्त।
तेण दु विरागचरिए समणो अब्भुट्ठिदो होदि॥ .
पडिकमणपहुदि- [(पडिकमण)-(पहुदि) वि- प्रतिक्रमण आदि किरियं (किरिया) 2/1] किरिया को कुव्वंतो (कुव्व) वकृ 1/1 करता हुआ . णिच्छयस्स (णिच्छय) 6/1+2/1 वि निश्चय चारित्तं (चारित्त) 2/1
चारित्र को अव्यय
इसलिए
पादपूरक विरागचरिए [(विराग) वि-(चरिअ) 7/1] वीतराग चारित्र में समणो (समण) 1/1
श्रमण अब्भुट्टिदो
(अब्भुट्टिद) भूकृ 1/1 अनि उन्नत (हो) व 3/1 अक होता है
तेण
अव्यय
होदि
अन्वय- पडिकमणपहुदिकिरियं कुव्वंतो णिच्छयस्स चारित्तं तेण दु समणो विरागचरिए अब्भुट्टिदो होदि।
___अर्थ- (चूँकि) (श्रमण) प्रतिक्रमण आदि क्रिया को करता हुआ निश्चय (अंतरंग) चारित्र को (प्राप्त करता है)। इसलिए (वह) श्रमण वीतराग चारित्र में उन्नत होता है।
1.
कोश में ‘णिच्छय' शब्द पुल्लिंग है । यहाँ विशेषण की तरह प्रयुक्त हुआ है। कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134)
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नियमसार (खण्ड-2)