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________________ 74. रयणत्तयसंजुत्ता जिणकहियपयत्थदेसया सूरा । णिक्कंखभावसहिया उवज्झाया एरिसा होंति ॥ रयणत्तयसंजुत्ता [ ( रयणत्तय) - ( संजुत्त) 1 / 2 वि] रत्नत्रय से युक्त जिणकहियपयत्थ- [(जिण) - (कहिय) भूक जिनेन्द्रदेव द्वारा कहे (पयत्थ) - (देसय) 1/2 वि ] गये पदार्थों के उपदेशक वीर देसया सूरा (सूर) 1/2 वि • णिक्कंखभावसहिया [ ( णिक्कंख) - (भाव) - (सहिय) 1/2 वि] ( उवज्झाय) 1 / 2 ( एरिस ) 1 / 2 वि (हो) व 3/2 अक उवज्झाया एरिसा होंति देसया सूरा इच्छा-रहित भावों से युक्त उपाध्याय अन्वय-उवज्झाया एरिसा होंति रयणत्तयसंजुत्ता जिणकहियपयत्थ णिक्कंखभावसहिया । अर्थ - उपाध्याय ऐसे होते हैं: रत्नत्रय से युक्त, जिनेन्द्रदेव द्वारा कहे गये नियमसार (खण्ड-1) ऐसे होते हैं पदार्थों के उपदेशक, वीर (और) इच्छा - रहित भावों से युक्त । (87)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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