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71. घणघाइकम्मरहिया केवलणाणाइपरमगुणसहिया । चोत्तिसअदिसयजुत्ता अरिहंता एरिसा होंति ॥
घणघाइकम्मरहिया [(घण) वि- (घाइकम्म) - ( रहिय) 1 / 2 वि]
केवलणाणाइपरम- [ (केवलणाण) +
गुणसहिया
(आइपरमगुणसहिया)]
[(केवलणाण) - (आइ) - (परम) वि- (गुण) 2 -
(सहिय) 1/2 वि ]
चोत्तिस अदिसयजुत्ता [ ( चोत्तिस) - (अदिसय) -
अरिहंता
एरिसा
हों
1.
2.
3.
(जुत्त) 1/2 वि]
( अरिहंत) 1 / 2
(एरिस) 1/2 वि
(हो) व 3/2 अक
(84)
प्रगाढ़ घातिया कर्मों से रहित
केवलज्ञान आदि सर्वोत्तम गुणों से युक्त
चौंतीस अतिशयसहित
अन्वय- अरिहंता एरिसा होंति घणघाइकम्मरहिया केवलणाणा - परमगुणसहिया चोत्तिस अदिसयजुत्ता ।
=
अर्थ - अरहंत ऐसे होते हैं: (जो) (चार) प्रगाढ़ घातिया कर्मों से रहित, केवलज्ञान आदि सर्वोत्तम - गुणों से युक्त तथा चौंतीस अतिशयसहित ।
अरहंत
ऐसे
होते हैं
घातिया-कर्मः (1) ज्ञानावरणीय ( 2 ) दर्शनावरणीय (3) अन्तराय (4) मोहनीय | सर्वोत्तम-गुणः (1) केवलज्ञान (2) केवलदर्शन (3) केवलसुख (4) केवलशक्ति । अतिशयः (1) जन्म के दस अतिशय (2) केवलज्ञान के दस अतिशय (3) देवकृत चौदह अतिशय ।
विस्तार के लिए देखें: तिलोयपण्णतिः 4 / 896-914
नियमसार (खण्ड-1)