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________________ 69. जा रायादिणियत्ती मणस्स जाणीहि तं मणोगुत्ती । अलियादिणियत्तिं वा मोणं वा होइ वइगुत्ती ॥ जा रायादिणियत्ती राग आदि का त्याग . मणस्स जाणीहि मन से जानो उसको मनोगुप्ति मणोगुत्ती अलियादिणियत्तिं (जा) 1/1 सवि [(राय)-(आदि)(णियत्ति) 1/1] (मण) 6/1-5/1 (जाण) विधि 2/1 सक (ता) 2/1 सवि (मणोगुत्ति) 1/1 [(अलिय)+ (आदिणियत्ति)] [(अलिय)-(आदि)(णियत्ति) 2/1] अव्यय (मोण) 2/1 अव्यय (हो) व 3/1 अक [(वइ)-(गुत्ति) 1/1] असत्य आदि के त्याग को अथवा वाणी के संयम को वा मोणं होइ वइगुत्ती वचनगुप्ति अन्वय- मणस्स जा रायादिणियत्ती तं जाणीहि मणो गुत्ती अलियादिणियत्तिं वा मोणं वा वइगुत्ती होइ। अर्थ- मन से जो रागादि का त्याग (है) उसको (तुम) जानो (कि) (वह) मनोगुप्ति (है)। असत्यादि का त्याग अथवा वाणी के संयमको भी (तुम जानो) (कि) (वह) वचनगुप्ति है। 1. कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) 2. प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ-691 (82) नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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