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67.
थीराजचोरभत्त
कहादिवयणस्स
पावहेउस्स'
परिहारो
वयगुत्ती
अलियादिणियत्ति
वयणं
वा
थीराजचोरभत्तकहादिवयणस्स
पावहेउस्स ।
परिहारो वयगुत्ती अलियादिणियत्तिवयणं वा ॥
1.
(80)
[(थी) - (राज) - (चोर) -
(भत्त) - ( कहा) - (आदि) -
( वयण ) 6 / 1 ]
[(पाव) - (हेउ) 6/1]
(परिहार) 1 / 1
(auryfa) 1/1
[ (अलिय) + (आदिणियत्ति
वयण)]
[(अलिय) - (आदि)(णियत्ति ) - ( वयण) 1 / 1]
अव्यय
स्त्रीकथा, राजकथा,
चोरकथा, भोजनकथा
आदि के कहने की
क्रिया का
पाप के कारण का
त्याग
वचनगुप्ति
अलियादिणियत्तिवयणं वा ।
1
अर्थ - (जो) पाप का कारण ( है ) (उस) स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, भोजनकथा आदि के कहने की क्रिया का त्याग वचनगुप्ति (है) (तथा) असत्य आदि के त्यागवाले वचन भी ( वचनगुप्ति है ) |
'कारण' अर्थ में 'हेउ' षष्ठी में रखा जाता है ।
( प्राकृत - व्याकरणः पृष्ठ 46 )
असत्य आदि के त्यागवाले वचन
| अन्वय - पावहेउस्स थीराजचोरभत्तकहादिवयणस्स परिहारो वयगुत्ती
नियमसार (खण्ड-1