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65. पासुगभूमिपदेसे गूढे रहिए परोपरोहेण ।
उच्चारादिच्चागो पइट्ठासमिदी हवे तस्स ॥
प्रासुक भूमिप्रदेश में प्रच्छन्न
रहिए
रहित
पर के लिए बाधा से
पासुगभूमिपदेसे [(पासुग) वि-(भूमि)
(पदेस) 7/1] गूढे
(गूढ) 7/1 वि
(रहिअ) 7/1 वि परोपरोहेण . [(पर)+ (उपरोहण)]
[(पर) वि-(उपरोह) 3/1] उच्चारादिच्चागो [(उच्चार)+ (आदिच्चागो)]
[(उच्चार)-(आदि)-
(च्चाग) 1/1] पइट्ठासमिदी [(पइट्ठा)-(समिदि) 1/1]
(हव) व 3/1 अक तस्स
(त) 6/1 सवि .
मलोत्सर्ग आदि का
त्याग
हवे
प्रतिष्ठापनसमिति । होती है उसके
अन्वय- परोपरोहेण रहिए गूढे पासुगभूमिपदेसे उच्चारादिच्चागो तस्स पइट्ठासमिदी हवे ।
'अर्थ- (जिस साधु का) पर के लिए बाधा से रहित, प्रच्छन्न (तथा) प्रासुक भूमिप्रदेश में मलोत्सर्ग (मल-मूत्र) आदि का त्याग (होता है) उस (साधु) के प्रतिष्ठापनसमिति होती है।
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नियमसार (खण्ड-1)