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________________ 64. पोत्थइकमंडलाइंगहणविसग्गेसु पयतपरिणामो। आदावणणिक्खेवणसमिदी होदि ति णिद्दिट्ठा ॥ पोत्थइकमंडलाइं पुस्तक, कमंडल आदि [(पोत्थइकमंडल)+(आई)] [(पोत्थइ)-(कमंडल)- (आइ) 2/1] [(गहण)-(विसग्ग) 7/2] गहणविसग्गेसु ले लेने और छोड़ने पयतपरिणामो [(पयत) वि-(परिणाम) 1/1] बड़ी सावधानी का भाव आदावणणिक्खेवण- [(आदावणणिक्खेवण)- आदाननिक्षेपणसमिति समिदी (समिदि) 1/1] होदि त्ति [(होदि) + (इति)] होदि (हो) व 3/1 अक होता है इति (अ) = पादपूरक पादपूरक णिद्दिवा (णिद्दिट्ठा) भूक 1/1 अनि कही गई अन्वय- पोत्थइकमंडलाइं गहणविसग्गेसु पयतपरिणामो होदि त्ति आदावणणिक्खेवणसमिदी णिहिट्ठा । अर्थ- (साधु) पुस्तक, कमंडल आदि को (रखता है)। (उन वस्तुओं को) ले लेने (ग्रहण करने) और छोड़ने (धरने) में (उस साधु के) बड़ी सावधानी का भाव होता है । (इसलिए)(उस साधु के) आदाननिक्षेपणसमिति कही गई (है)। नियमसार (खण्ड-1) (77)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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